महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग पर हंगामा, उद्धव ठाकरे का बीजेपी पर तंज
महाराष्ट्र- महाराष्ट्र के नागपुर में औरंगजेब की कब्र को राज्य से बाहर स्थानांतरित करने की मांग को लेकर मंगलवार को आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आईं। इस मुद्दे पर चल रहे विवाद के बीच पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सवाल किया कि 300 साल पहले मर चुके मुगल शासक को लेकर अब टकराव की जरूरत क्यों पड़ रही है।
उद्धव ठाकरे ने अपने बयान में कहा, "अगर आप चाहें तो उसकी कब्र हटा सकते हैं... लेकिन पहले चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को बुलाइए।" उनके इस तंज को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर हमला माना जा रहा है। उन्होंने यह बयान ऐसे समय पर दिया है जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी के अहम सहयोगी हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, ठाकरे का यह बयान इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि आंध्र प्रदेश और बिहार में मुस्लिम मतदाता एक प्रभावी भूमिका निभाते हैं और आगामी चुनावों में तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और जनता दल (यूनाइटेड) के लिए उनका समर्थन महत्वपूर्ण होगा।
बीजेपी को घेरते हुए ठाकरे ने एक और कटाक्ष किया और कहा कि "औरंगजेब तो गुजरात में पैदा हुआ था।" गौरतलब है कि औरंगजेब का जन्म 1618 में गुजरात के दाहोद में हुआ था और उनकी मृत्यु 1707 में महाराष्ट्र के भिंगर में हुई थी। ठाकरे के इस बयान को गुजरात में बीजेपी के राजनीतिक गढ़ की ओर संकेत के रूप में भी देखा जा रहा है।
नागपुर में हुई हिंसा के बाद प्रशासन ने स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए कड़े सुरक्षा इंतजाम किए हैं। कई इलाकों में पुलिस बल तैनात कर दिया गया है, ताकि और कोई अप्रिय घटना न हो। इस बीच, ठाकरे गुट की शिवसेना और बीजेपी समर्थकों के बीच बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए हैं।
औरंगजेब का मुद्दा महाराष्ट्र की राजनीति में पहले भी विवादों का कारण बना है। कुछ दक्षिणपंथी संगठनों का मानना है कि उनकी कब्र को राज्य से हटा देना चाहिए, जबकि विपक्षी दल इसे सांप्रदायिक राजनीति करार दे रहे हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि महाराष्ट्र में आगामी लोकसभा चुनावों से पहले यह मुद्दा और भी तूल पकड़ सकता है। वहीं, ठाकरे का बयान बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के संबंधों को लेकर नए सवाल खड़े कर सकता है। अब देखना होगा कि बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियां इस पर क्या प्रतिक्रिया देती हैं और महाराष्ट्र की राजनीति किस ओर मुड़ती है।