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बिदेश / 16 February, 2025

अमेरिकी सरकार ने भारत में मतदाता जागरूकता के लिए $21 मिलियन की सहायता रद्द की; भाजपा ने इसे 'बाहरी हस्तक्षेप' कहा

अमेरिकी सरकार के दक्षता विभाग (Department of Government Efficiency - DOGE), जिसका नेतृत्व एलन मस्क कर रहे हैं, ने पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन के दौरान भारत में मतदाता जागरूकता बढ़ाने के लिए आवंटित $21 मिलियन की सहायता राशि को रद्द कर दिया है। DOGE ने अपने बयान में बताया कि यह राशि "कंसोर्टियम फॉर इलेक्शंस एंड पॉलिटिकल प्रोसेस स्ट्रेंथनिंग" के लिए निर्धारित $486 मिलियन के बजट का हिस्सा थी।

इसके अतिरिक्त, बांग्लादेश में राजनीतिक परिदृश्य को मजबूत करने के लिए $29 मिलियन की राशि भी निर्धारित की गई थी। बांग्लादेश हाल ही में राजनीतिक उथल-पुथल का सामना कर रहा है, जहां पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पद से हटने में अमेरिकी 'डीप स्टेट' की संलिप्तता के आरोप लगे हैं।

भाजपा ने इस अब रद्द की गई फंडिंग को भारत की चुनावी प्रक्रिया में 'बाहरी हस्तक्षेप' करार दिया है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अमित मालवीय ने एक बयान में कहा, "$21 मिलियन मतदाता जागरूकता के लिए? यह निश्चित रूप से भारत की चुनावी प्रक्रिया में बाहरी हस्तक्षेप है। इससे किसे लाभ होता है? निश्चित रूप से सत्तारूढ़ पार्टी को नहीं!"

एलन मस्क, जो DOGE के प्रमुख हैं, ने पहले भी भारत की चुनावी प्रक्रिया की प्रशंसा की है। उन्होंने नवंबर 2024 में भारत द्वारा एक दिन में 64 करोड़ वोटों की गिनती को सराहा था और अमेरिकी प्रणाली की धीमी गति पर कटाक्ष किया था। मस्क ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा था, "भारत ने एक दिन में 640 मिलियन वोटों की गिनती की। कैलिफ़ोर्निया अभी भी वोटों की गिनती कर रहा है।" 

इस निर्णय ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं उत्पन्न की हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि एक देश की चुनावी प्रक्रिया में दूसरे देश की वित्तीय सहायता संप्रभुता के सिद्धांतों का उल्लंघन कर सकती है। वहीं, कुछ का तर्क है कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है।

बांग्लादेश में भी, $29 मिलियन की सहायता राशि रद्द होने से राजनीतिक हलकों में चर्चा हो रही है। शेख हसीना की सरकार के पतन में अमेरिकी 'डीप स्टेट' की कथित भूमिका के आरोपों के बीच, इस फंडिंग को रद्द करना कई सवाल खड़े करता है।

DOGE के इस कदम से यह स्पष्ट होता है कि वर्तमान अमेरिकी प्रशासन विदेशी चुनावी प्रक्रियाओं में प्रत्यक्ष वित्तीय हस्तक्षेप से बचना चाहता है। हालांकि, यह देखना बाकी है कि इस निर्णय का भारत-अमेरिका और बांग्लादेश-अमेरिका संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

भारत में, भाजपा और अन्य राजनीतिक दल इस निर्णय का स्वागत कर रहे हैं, इसे देश की संप्रभुता की रक्षा की दिशा में एक सकारात्मक कदम मानते हुए। वहीं, कुछ विपक्षी दलों का मानना है कि विदेशी सहायता से देश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को और मजबूत किया जा सकता था।

अंततः, यह घटना अंतरराष्ट्रीय राजनीति में संप्रभुता, हस्तक्षेप और सहयोग के बीच संतुलन की जटिलता को उजागर करती है। भविष्य में, देशों को अपने आंतरिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप से बचने के लिए सतर्क रहना होगा, साथ ही लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक सहयोग के मार्ग भी खोजने होंगे।
 

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