संसद के दोनों सदनों से पारित हुआ वक्फ (संशोधन) विधेयक, वक्फ बोर्ड की शक्तियों में कटौती पर विपक्ष का विरोध
नई दिल्ली: संसद के दोनों सदनों से वक्फ (संशोधन) विधेयक पारित हो गया है। बुधवार देर रात लोकसभा में पारित होने के बाद, गुरुवार को राज्यसभा ने भी इस विधेयक को मंजूरी दे दी। दोनों सदनों से 24 घंटे के भीतर विधेयक पारित होने के बाद अब यह महज एक औपचारिकता भर रह गई है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिलते ही यह विधेयक कानून बन जाएगा।
यह संशोधन उस वक्फ कानून में बदलाव करेगा जो लगभग 70 साल पुराना है। मूल वक्फ अधिनियम 1954 में लागू हुआ था, जिसे 1995 में संशोधित कर वक्फ बोर्ड की शक्तियों में काफी वृद्धि की गई थी। लेकिन अब, तीन दशक बाद संसद द्वारा पारित यह नया संशोधन, वक्फ बोर्ड की भूमिका और अधिकारों को एक बार फिर से परिभाषित करने जा रहा है।
जहां सरकार का दावा है कि यह संशोधन पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है, वहीं सभी विपक्षी दलों ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि यह वक्फ बोर्ड की शक्तियों में असंगत और अनुचित रूप से कटौती करता है। विपक्ष का कहना है कि इस संशोधन के जरिये वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को कमजोर किया जा रहा है और इससे अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
विधेयक के पारित होने पर सदन में बहस के दौरान विपक्षी नेताओं ने चिंता जताई कि इससे वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा और प्रबंधन पर असर पड़ेगा। कई नेताओं ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार इस संशोधन के माध्यम से वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण स्थापित करना चाहती है और यह अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ एकतरफा कदम है।
हालांकि, केंद्र सरकार ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि संशोधन का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है। सरकार ने यह भी तर्क दिया कि इससे भ्रष्टाचार और दुरुपयोग पर रोक लगेगी, जो पिछले कुछ वर्षों से वक्फ बोर्ड के संचालन में सामने आए हैं।
अब सबकी निगाहें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी पर टिकी हैं। उनके हस्ताक्षर के साथ ही यह विधेयक कानून बन जाएगा और देश भर के वक्फ बोर्डों के अधिकारों व कार्यप्रणाली में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। यह संशोधन न केवल वक्फ बोर्ड के कार्यक्षेत्र को प्रभावित करेगा, बल्कि इसके दूरगामी सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव भी हो सकते हैं।
देश में वक्फ संपत्तियां एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक धरोहर मानी जाती हैं, और ऐसे में इस कानून में किया गया कोई भी संशोधन सीधे तौर पर समुदायों के हितों से जुड़ा होता है। संसद से पास हुए इस विधेयक पर उठ रहे सवालों के बीच अब यह देखना होगा कि इसका क्रियान्वयन किस प्रकार होता है और वक्फ बोर्ड व इससे जुड़े समुदायों की प्रतिक्रियाएं आगे क्या रूप लेती हैं।