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देश / 27 February, 2025

प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री पर विवाद: दिल्ली विश्वविद्यालय ने आरटीआई के तहत जानकारी साझा करने से किया इनकार

दिल्ली- दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने गुरुवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री से संबंधित अपने रिकॉर्ड अदालत को दिखाने के लिए तैयार है, लेकिन इसे सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत "अजनबियों" के साथ साझा नहीं करेगा। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह दलील पेश की, जिसके बाद अदालत ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के आदेश के खिलाफ डीयू की याचिका पर अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया।

सीआईसी ने अपने आदेश में डीयू को निर्देश दिया था कि वह प्रधानमंत्री की बैचलर डिग्री से संबंधित जानकारी का खुलासा करे। इस आदेश को चुनौती देते हुए डीयू ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में तर्क दिया कि आरटीआई अधिनियम का उद्देश्य किसी तीसरे पक्ष की जिज्ञासा को संतुष्ट करना नहीं है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय छात्रों की जानकारी को गोपनीयता के साथ रखता है, और कानून द्वारा इसे किसी अजनबी के साथ साझा करने से छूट प्राप्त है।

मेहता ने यह भी कहा कि आरटीआई अधिनियम के तहत सभी प्रकार की सूचनाओं के खुलासे की अंधाधुंध मांग प्रशासन की दक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। उन्होंने तर्क दिया कि सार्वजनिक प्राधिकरणों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही से संबंधित जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए, लेकिन यह अधिनियम किसी की व्यक्तिगत जिज्ञासा को संतुष्ट करने के लिए नहीं है।

इससे पहले, सीआईसी ने अपने आदेश में कहा था कि एक छात्र की शिक्षा से संबंधित मामले सार्वजनिक डोमेन में आते हैं, और इसलिए संबंधित सार्वजनिक प्राधिकरण को तदनुसार जानकारी का खुलासा करना चाहिए। हालांकि, डीयू ने इस आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि यह जानकारी तीसरे पक्ष की व्यक्तिगत जानकारी है, जिसे गोपनीय रखा जाना चाहिए।

डीयू ने यह भी कहा कि सीआईसी का आदेश मनमाना है और कानून की दृष्टि से अस्थिर है, क्योंकि इसमें किसी भी आवश्यक आवश्यकता या अत्यधिक सार्वजनिक हित का उल्लेख नहीं किया गया है जो ऐसी जानकारी के प्रकटीकरण की गारंटी देता हो। विश्वविद्यालय ने तर्क दिया कि इस तरह की जानकारी का खुलासा आरटीआई अधिनियम का दुरुपयोग है और इससे प्रशासनिक कार्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

इस मामले में अदालत ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है, और आगामी सुनवाई में यह देखा जाएगा कि अदालत डीयू की दलीलों को स्वीकार करती है या सीआईसी के आदेश को बरकरार रखती है। यह मामला न केवल प्रधानमंत्री की डिग्री से संबंधित है, बल्कि आरटीआई अधिनियम के दायरे और सीमाओं पर भी महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है।
 

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