वक्फ संशोधन विधेयक: कैबिनेट की मंजूरी के बाद संसद में पेश, विपक्ष का विरोध जारी
केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) विधेयक को मंजूरी दे दी है, जो संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की सिफारिशों पर आधारित है। यह रिपोर्ट 13 फरवरी को संसद में प्रस्तुत की गई थी। सूत्रों के अनुसार, कैबिनेट ने 19 फरवरी को हुई बैठक में इस विधेयक में संशोधनों को स्वीकृति दी। बजट सत्र के पहले चरण में, जब यह रिपोर्ट लोकसभा और राज्यसभा में पेश की गई, तब विपक्ष के हंगामे के कारण दोनों सदनों की कार्यवाही में बाधा आई और उन्हें संक्षिप्त रूप से स्थगित करना पड़ा।
जेपीसी ने विधेयक में कुल 14 संशोधनों को मंजूरी दी है, जबकि विपक्ष द्वारा प्रस्तावित कई सुझावों को खारिज कर दिया गया। समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने बताया कि इन संशोधनों का उद्देश्य कानून को और अधिक प्रभावी बनाना है। बैठक के दौरान, विपक्षी सदस्यों ने कार्यवाही की आलोचना की और पाल पर "लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने" का आरोप लगाया। तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने इसे "दिखावटी बैठक" करार दिया, जहां विपक्ष की बात नहीं सुनी गई। हालांकि, पाल ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि पूरी प्रक्रिया लोकतांत्रिक थी और बहुमत के आधार पर निर्णय लिए गए।
समिति के समक्ष कुल 44 संशोधन प्रस्तावित किए गए थे, जिनमें से 14 को मंजूरी दी गई। भाजपा सांसदों द्वारा प्रस्तावित सभी 10 संशोधनों को स्वीकार किया गया, जबकि विपक्ष के सभी संशोधनों को मतदान के माध्यम से खारिज कर दिया गया। एक महत्वपूर्ण संशोधन के तहत, वर्तमान कानून में मौजूद 'वक्फ बाय यूजर' के आधार पर मौजूदा वक्फ संपत्तियों को चुनौती नहीं दी जा सकेगी, यदि वे धार्मिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जा रही हों।
सूत्रों के अनुसार, संशोधनों में यह भी प्रस्तावित है कि कलेक्टर या उससे ऊपर का अधिकारी, जिसे सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा, यह निर्धारित करेगा कि कोई संपत्ति वक्फ के अधीन आती है या नहीं। इसके अलावा, वक्फ ट्रिब्यूनल में अब दो के बजाय तीन सदस्य होंगे, जिनमें एक इस्लामी विद्वान भी शामिल होगा। वक्फ बोर्ड या काउंसिल में कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्यों की उपस्थिति भी सुनिश्चित की गई है।
विपक्ष ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या बढ़ाने के प्रस्ताव पर आपत्ति जताई है। उनका तर्क है कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की आवश्यकता नहीं है। इसके अलावा, एक अन्य संशोधन के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो दावा करता है कि वह पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहा है, उसे यह साबित करना होगा, और तभी वह अपनी संपत्ति वक्फ में दान कर सकेगा, बशर्ते वह संपत्ति किसी विवाद में न हो।
जेपीसी की अंतिम बैठक में 31 में से 26 सदस्य उपस्थित थे, जिनमें से 16 सत्ता पक्ष के और 10 विपक्ष के थे। विपक्ष द्वारा प्रस्तुत सभी संशोधन 10-16 के मतों से खारिज कर दिए गए, जबकि भाजपा के सभी संशोधन 16-10 के मतों से स्वीकार किए गए। अगली बैठक 29 जनवरी को निर्धारित की गई है, जिसमें संशोधित विधेयक की ड्राफ्ट रिपोर्ट सदस्यों को सौंपी जाएगी। माना जा रहा है कि बजट सत्र के दौरान यह रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को सौंपी जाएगी, जिसके बाद संशोधित विधेयक को सदन में पेश किया जाएगा।
विपक्ष ने इस प्रक्रिया की आलोचना करते हुए इसे "दिखावटी" करार दिया है और आरोप लगाया है कि उनकी बातों को सुना नहीं गया। हालांकि, समिति के अध्यक्ष ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि सभी निर्णय लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत बहुमत के आधार पर लिए गए हैं। इस विधेयक के पारित होने के बाद, वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और प्रशासन में सुधार की उम्मीद है, जिससे संबंधित विवादों का समाधान और पारदर्शिता बढ़ेगी।